Wednesday, 31 July 2013
Monday, 29 July 2013
मुलाहिज़ा फ़रमाएं, ट्वीट किया है! Mulahaiza farmaaye Tweet kiya hai
http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/07/130725_urdu_shayri_social_media_aj.shtml
This article ( link above ) on shair appeared on BBC Hindi website on 26th July 2013
BBC
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मुलाहिज़ा फ़रमाएं, ट्वीट किया है!
अजय शर्मा
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
शुक्रवार, 26 जुलाई, 2013 को 10:19 IST तक के समाचार
जश्ने बहार मुशायरा
मिर्ज़ा ग़ालिब की सहेली उर्दू अब सोशल मीडिया की भी सहेली है. उर्दू शायरी अब फ़ेसबुक पर धड़कती है और ट्विटर पर चहकती है. इस नए ठिकाने पर उसके हज़ारों दोस्त हैं और लाखों चाहने वाले.
राना सफ़वी इन्हीं में एक हैं, जिन्होंने एक साल पहले हैशटैग शायर के साथ एक ट्वीट हैंडल @shairoftheday शुरू किया. जो ट्विटर पर शायद सबसे मशहूर और सक्रिय ग्रुपों में एक है. जहां लोग शायरी की बारीक़ियों का मज़ा लेते हैं.
संबंधित समाचार
'ग़ालिब को भारत रत्न क्यों नहीं?'
उर्दू में क्यों बढ़ रही है दिलचस्पी?
सारे जहां में धूम उर्दू ज़बाँ की..!
टॉपिक
भारत
यूं तो ट्विटर पर हर शायर का हैंडल मौजूद है, जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब, साहिर लुधियानवी, जिगर मुरादाबादी, अकबर इलाहाबादी और नए शायरों में वसीम बरेलवी, निदा फ़ाज़ली आदि.
'अस्पताल में तीन महीने #शायर के साथ'
राना सफ़वी
राना सफ़वी के मुताबिक़ उनके ट्वीट हैंडल के लोकप्रिय होने की वजह उसका एक ग्रुप की तरह काम करना है.
राना सफ़वी के मुताबिक वो इसलिए लोकप्रिय नहीं हो पा रहे क्योंकि पूरे ग्रुप को लेकर चलना होता है और अब उनका ट्वीट हैंडल एक परिवार की शक्ल ले चुका है.
राना सफ़वी ने बताया, ‘एक बार जयपुर से एक शख्स महेश पारीख का ट्वीट मेरे पास आया कि मैं अस्पताल में था और तीन महीने मैंने शायर के ट्वीट पढ़कर गुजारे हैं’
राना सफ़वी दुबई में रहती हैं मगर उनके ट्वीट हैंडल के फॉलोअर दुनिया के तक़रीबन हर हिस्से में हैं. हर रविवार को वो शेड्यूल बनाती हैं कि इस बार किस शायर के बारे में चर्चा होगी. हर सुबह वह अपना स्टेटस अपडेट करती हैं.
राना सफ़वी के मुताबिक़ उनके ट्वीट हैंडल पर ग़ालिब की डिमांड बहुत ज़्यादा है, लेकिन हम उन्हें तीन महीने से पहले दोबारा नहीं रखते. यहां तक कि 2011 में ग़ालिब की सदी के आयोजन के दौरान उन्होंने ट्रेंड कराने के लिए ग़ालिब के 500 शेर ट्वीट किए थे. उनके अलावा सभी ने 100 से 400 शेर तक शेर ट्वीट किए थे.
'अदब का लोकतंत्रीकरण किया ट्विटर ने'
आनंद पांडे
@shairoftheday के फॉलोअर आनंद पांडे का कहना है कि ट्विटर एक तरह का चौक है जहां उर्दू शायरी के मुरीद गुफ़्तगू कर सकते हैं.
शायर ऑफ़ द डे के फ़ॉलोअर आनंद पांडे यूं तो एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं लेकिन ट्विटर पर क्लिक करें उर्दू शायरी की दुनिया में भी दखल रखते हैं.
आनंद पांडे कहते हैं, ‘ये मेरी दौलत है जो मुझे ट्विटर के ज़रिए मिली है. मैं कई शायरों के नाम भी नहीं जानता था. कई को लेकर मेरे पूर्वाग्रह थे. जबसे ट्विटर पर मैंने शायरी पर बातचीत में हिस्सा लिया तो मेरी समझ का विस्तार हुआ और गहराई बढ़ गई.’
आनंद पांडे के मुताबिक क्लिक करें उर्दू के ट्विटर को मकाम बनाने के बाद दो चीजें हुईं- एक तो अदब का लोकतंत्रीकरण हुआ. दूसरे ये जगह हिंदू-मुस्लिम और हिंदी बनाम उर्दू की रूढ़िवादिता से आज़ाद हो गई है. उनके लफ़्ज़ों में ये एक चौक है जहां साहित्यप्रेमी आते हैं और बातचीत करके चले जाते हैं.
'शायरी सिर्फ़ बुज़ुर्गों का काम नहीं'
वसीम बरेलवी
शायर वसीम बरेलवी कहते हैं कि सोशल मीडिया पर उर्दू शायरी के मुरीद सिर्फ़ उर्दू जानने वाले ही नहीं बल्कि हिंदी वाले भी हैं
क्लिक करें सोशल मीडिया के इसी चौक पर आपको कई क्लासिकी और मौजूदा क्लिक करें शायरों के पन्ने मिलेंगे. इनमें एक हैं- जाने-माने शायर वसीम बरेलवी, जिनके ट्विटर पर मुरीद खासी तादाद में हैं. वसीम बरेलवी सोशल मीडिया पर शायरी के बढ़ते कदमों को इन्क़लाब का दर्जा देते हैं.
वसीम बरेलवी कहते हैं, ‘मीर के जमाने में शायरी दिल्ली से रामपुर और लखनऊ का सफ़र दो-ढाई महीने में तय करती थी. आज सूरतेहाल यह है कि इधर आपके मुंह से बात निकली और उधर सारी दुनिया में पहुंच गई. पहले हम समझते थे कि शायरी तो उमररसीदा लोगों की चीज़ है, लेकिन नहीं, नई पीढ़ी किस-किस तरह शायरी तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, ये खुशआईन बात है. और ऐसी पीढ़ी भी कोशिश कर रही है जिसकी ज़बान उर्दू नहीं.’
ये बात और है कि वसीम बरेलवी ख़ुद गाहे-बगाहे ही क्लिक करें फ़ेसबुक और क्लिक करें ट्विटर का चक्कर लगाते हैं. हालांकि कई नौजवान शायरों के लिए अपने मुरीदों तक पहुंचने का इससे बेहतर प्लेटफार्म नहीं.
'शायरी कोई वन-डे क्रिकेट नहीं'
मुनव्वर राना
शायर मुनव्वर राना कहते हैं कि उनके पास सोशल मीडिया के लिए वक़्त नहीं है और वह इसमें वक़्त ज़ाया भी नहीं करना चाहते.
शायर मोइद रशीदी के मुताबिक़ ऑनलाइन पब्लिसिटी का ज़रिया है सोशल मीडिया प्लेटफार्म. यह किताब की सूरत में नहीं है, पर इंटरनेट पर आ गई है. उनका कहना है कि इस माध्यम में चीजों को अस्थायी नहीं कहा जा सकता. वहां मौजूद वर्ग शेरो-शायरी का पूरी तरह आनंद लेता है, उस पर कमेंट करता है और उससे लगातार जुड़ा रहता है.
नए शायरों के विपरीत स्थापित शायरों में एक मुनव्वर राना को ट्विटर की ताक़त से तो इनकार नहीं, पर वह ख़ुद इसमें वक़्त ज़ाया नहीं करना चाहते. उनके मुताबिक़ उनका काम सृजनात्मक है और वह चाहते हैं कि उनके लिखे हुए का स्थायी महत्व हो. चाहे फिर उसे सदी बाद ही क्यों न पढ़ा जाए.
मुनव्वर राना ने कहा, ‘असल में ट्विटर एक नशा है. नशा है इसलिए कि हम उसका रेस्पांस चाहते हैं. यह उन लोगों के लिए अच्छा है जो शोहरत की बुलंदी पर बैठना चाहते हैं. हमारा काम क्रिएट करना है. हम लोग तो लिखने-पढ़ने वाले लोग हैं. जरूरी नहीं कि हमारा लिखा आज ही पढ़ा जाए क्योंकि शायरी कोई वनडे क्रिकेट नहीं है. इसलिए हमें उसे लोगों तक पहुंचाने की जल्दबाज़ी नहीं.’
निदा फ़ाज़ली
शायर निदा फ़ाज़ली मानते हैं कि उर्दू की अब अहमियत नहीं रह गई है. उसके ज़रिए लोग सियासत कर रहे हैं.
ट्विटर पर काफ़ी पसंद किए जाने वाले शायर क्लिक करें निदा फ़ाज़ली को ख़ुद इस मीडियम में यक़ीन नहीं है. वह कहते हैं कि उर्दू सियासत का खिलौना बना दी गई है और बाज़ार में भी उसकी अहमियत नहीं है.
इसके लिए फ़ाज़ली हिंदी सिनेमा का उदाहरण सामने रखते हैं. ‘उर्दू बाज़ार में नहीं है. बंबई में कब्रिस्तान है जिसने मधुबाला, मोहम्मद रफ़ी और साहिर भी दिए हैं. बाज़ार जब तराजू लेकर पहुंचा तो पता चला कि मधुबाला के चेहरे की क़ीमत ज़्यादा है तो उनकी क़ब्र मार्बल की हो गई. रफी की आवाज़ की क़ीमत ज़्यादा थी तो उनकी क़ब्र ग्रेनाइट की हो गई और साहिर की क़ब्र शब्दों की थी तो पांच बरसातों के बाद ही वह ज़मीन बन गई.’
'सोशल मीडिया पाठ्यक्रम का हिस्सा बने'
उर्दू की तालीम देने वाले क्या सोचते हैं? यह जानने के लिए बीबीसी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद से बात की. प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद ने उर्दू के सोशल मीडिया से रिश्तों की पुरज़ोर तरफ़दारी की. यहां तक कि उनका कहना था कि इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया जा सकता है.
प्रोफ़ेसर तौक़ीर के मुताबिक़ सोशल मीडिया पर उर्दू शेरो-शायरी को आगे बढ़ाने वाले हालांकि उर्दू रसमुल खत (लिपि) का इस्तेमाल नहीं करते लेकिन इसके बावजूद वह उर्दू ही होती है. इसके ज़रिए नई पीढ़ी उर्दू के क्लासिकी शायरों के बारे में जानने की कोशिश कर रही है. उनका कहना है कि उनका काम है कि उर्दू शब्दों के उच्चारण का सही ज्ञान दें.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद
दिल्ली यूनिवर्सिटी में उर्दू विभाग प्रमुख प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद मानते हैं कि सोशल मीडिया को उर्दू पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
दिल्ली विश्वविद्यालय में ही असिस्टेंट टीचर अफ़साना हयात इक़बाल पर शोध कर रही हैं. उनका कहना है कि उर्दू को उसकी पहचान चाहिए. अफ़साना हयात के मुताबिक सोशल मीडिया उसे इस पहचान के संकट से उबार सकता है मगर वहां उर्दू के लफ़्ज़ों के सही इस्तेमाल पर ज़ोर नहीं होता.
'140 करेक्टर में फ़िट बैठता है शेर'
क्या उर्दू शायरी किताबों से निकलकर वर्चुअल दुनिया में अपना सही मक़ाम हासिल कर सकती है. बीबीसी हिंदी में सोशल मीडिया का काम संभाल रहे सुशील झा के मुताबिक ट्विटर ने उर्दू शायरी को वो इकोनॉमी मुहैया कराई है, जिसमें एक शेर 140 करेक्टर में बख़ूबी अपनी जगह बना लेता है.
सुशील झा कहते हैं, ‘ट्विटर पर एक बाध्यता होती है कि 140 करेक्टर में ही जाना है, और उर्दू के शेर भी ऐसे ही होते हैं छोटे. जैसे ग़ालिब का एक शेर है कि इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना आदमी हम भी थे काम के. अब ये ट्विटर पर फ़िट बैठता है. अगर आपने किसी को टैग कर दिया, हैशटैग कर दिया तो और कुछ कहने की जरूरत नहीं.’
आप शायर हैं या फिर शायरी के मुरीद. ट्विटर और फ़ेसबुक पर आपको तमाम ऐसे ठिकाने मिलेंगे, जहां आपके पसंदीदा शायर और उनका कलाम संजोकर रखा गया है. इसी के साथ आपको अपने जैसे सैकड़ों वो लोग मिलेंगे जो अपने शायरों का इस्तक़बाल करने के लिए बैठे हैं.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक करें क्लिक कर सकते हैं. आप हमें क्लिक करें फ़ेसबुक और क्लिक करें ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)
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मुलाहिज़ा फ़रमाएं, ट्वीट किया है!
अजय शर्मा
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
शुक्रवार, 26 जुलाई, 2013 को 10:19 IST तक के समाचार
जश्ने बहार मुशायरा
मिर्ज़ा ग़ालिब की सहेली उर्दू अब सोशल मीडिया की भी सहेली है. उर्दू शायरी अब फ़ेसबुक पर धड़कती है और ट्विटर पर चहकती है. इस नए ठिकाने पर उसके हज़ारों दोस्त हैं और लाखों चाहने वाले.
राना सफ़वी इन्हीं में एक हैं, जिन्होंने एक साल पहले हैशटैग शायर के साथ एक ट्वीट हैंडल @shairoftheday शुरू किया. जो ट्विटर पर शायद सबसे मशहूर और सक्रिय ग्रुपों में एक है. जहां लोग शायरी की बारीक़ियों का मज़ा लेते हैं.
संबंधित समाचार
'ग़ालिब को भारत रत्न क्यों नहीं?'
उर्दू में क्यों बढ़ रही है दिलचस्पी?
सारे जहां में धूम उर्दू ज़बाँ की..!
टॉपिक
भारत
यूं तो ट्विटर पर हर शायर का हैंडल मौजूद है, जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब, साहिर लुधियानवी, जिगर मुरादाबादी, अकबर इलाहाबादी और नए शायरों में वसीम बरेलवी, निदा फ़ाज़ली आदि.
'अस्पताल में तीन महीने #शायर के साथ'
राना सफ़वी
राना सफ़वी के मुताबिक़ उनके ट्वीट हैंडल के लोकप्रिय होने की वजह उसका एक ग्रुप की तरह काम करना है.
राना सफ़वी के मुताबिक वो इसलिए लोकप्रिय नहीं हो पा रहे क्योंकि पूरे ग्रुप को लेकर चलना होता है और अब उनका ट्वीट हैंडल एक परिवार की शक्ल ले चुका है.
राना सफ़वी ने बताया, ‘एक बार जयपुर से एक शख्स महेश पारीख का ट्वीट मेरे पास आया कि मैं अस्पताल में था और तीन महीने मैंने शायर के ट्वीट पढ़कर गुजारे हैं’
राना सफ़वी दुबई में रहती हैं मगर उनके ट्वीट हैंडल के फॉलोअर दुनिया के तक़रीबन हर हिस्से में हैं. हर रविवार को वो शेड्यूल बनाती हैं कि इस बार किस शायर के बारे में चर्चा होगी. हर सुबह वह अपना स्टेटस अपडेट करती हैं.
राना सफ़वी के मुताबिक़ उनके ट्वीट हैंडल पर ग़ालिब की डिमांड बहुत ज़्यादा है, लेकिन हम उन्हें तीन महीने से पहले दोबारा नहीं रखते. यहां तक कि 2011 में ग़ालिब की सदी के आयोजन के दौरान उन्होंने ट्रेंड कराने के लिए ग़ालिब के 500 शेर ट्वीट किए थे. उनके अलावा सभी ने 100 से 400 शेर तक शेर ट्वीट किए थे.
'अदब का लोकतंत्रीकरण किया ट्विटर ने'
आनंद पांडे
@shairoftheday के फॉलोअर आनंद पांडे का कहना है कि ट्विटर एक तरह का चौक है जहां उर्दू शायरी के मुरीद गुफ़्तगू कर सकते हैं.
शायर ऑफ़ द डे के फ़ॉलोअर आनंद पांडे यूं तो एक बड़ी कंपनी में काम करते हैं लेकिन ट्विटर पर क्लिक करें उर्दू शायरी की दुनिया में भी दखल रखते हैं.
आनंद पांडे कहते हैं, ‘ये मेरी दौलत है जो मुझे ट्विटर के ज़रिए मिली है. मैं कई शायरों के नाम भी नहीं जानता था. कई को लेकर मेरे पूर्वाग्रह थे. जबसे ट्विटर पर मैंने शायरी पर बातचीत में हिस्सा लिया तो मेरी समझ का विस्तार हुआ और गहराई बढ़ गई.’
आनंद पांडे के मुताबिक क्लिक करें उर्दू के ट्विटर को मकाम बनाने के बाद दो चीजें हुईं- एक तो अदब का लोकतंत्रीकरण हुआ. दूसरे ये जगह हिंदू-मुस्लिम और हिंदी बनाम उर्दू की रूढ़िवादिता से आज़ाद हो गई है. उनके लफ़्ज़ों में ये एक चौक है जहां साहित्यप्रेमी आते हैं और बातचीत करके चले जाते हैं.
'शायरी सिर्फ़ बुज़ुर्गों का काम नहीं'
वसीम बरेलवी
शायर वसीम बरेलवी कहते हैं कि सोशल मीडिया पर उर्दू शायरी के मुरीद सिर्फ़ उर्दू जानने वाले ही नहीं बल्कि हिंदी वाले भी हैं
क्लिक करें सोशल मीडिया के इसी चौक पर आपको कई क्लासिकी और मौजूदा क्लिक करें शायरों के पन्ने मिलेंगे. इनमें एक हैं- जाने-माने शायर वसीम बरेलवी, जिनके ट्विटर पर मुरीद खासी तादाद में हैं. वसीम बरेलवी सोशल मीडिया पर शायरी के बढ़ते कदमों को इन्क़लाब का दर्जा देते हैं.
वसीम बरेलवी कहते हैं, ‘मीर के जमाने में शायरी दिल्ली से रामपुर और लखनऊ का सफ़र दो-ढाई महीने में तय करती थी. आज सूरतेहाल यह है कि इधर आपके मुंह से बात निकली और उधर सारी दुनिया में पहुंच गई. पहले हम समझते थे कि शायरी तो उमररसीदा लोगों की चीज़ है, लेकिन नहीं, नई पीढ़ी किस-किस तरह शायरी तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, ये खुशआईन बात है. और ऐसी पीढ़ी भी कोशिश कर रही है जिसकी ज़बान उर्दू नहीं.’
ये बात और है कि वसीम बरेलवी ख़ुद गाहे-बगाहे ही क्लिक करें फ़ेसबुक और क्लिक करें ट्विटर का चक्कर लगाते हैं. हालांकि कई नौजवान शायरों के लिए अपने मुरीदों तक पहुंचने का इससे बेहतर प्लेटफार्म नहीं.
'शायरी कोई वन-डे क्रिकेट नहीं'
मुनव्वर राना
शायर मुनव्वर राना कहते हैं कि उनके पास सोशल मीडिया के लिए वक़्त नहीं है और वह इसमें वक़्त ज़ाया भी नहीं करना चाहते.
शायर मोइद रशीदी के मुताबिक़ ऑनलाइन पब्लिसिटी का ज़रिया है सोशल मीडिया प्लेटफार्म. यह किताब की सूरत में नहीं है, पर इंटरनेट पर आ गई है. उनका कहना है कि इस माध्यम में चीजों को अस्थायी नहीं कहा जा सकता. वहां मौजूद वर्ग शेरो-शायरी का पूरी तरह आनंद लेता है, उस पर कमेंट करता है और उससे लगातार जुड़ा रहता है.
नए शायरों के विपरीत स्थापित शायरों में एक मुनव्वर राना को ट्विटर की ताक़त से तो इनकार नहीं, पर वह ख़ुद इसमें वक़्त ज़ाया नहीं करना चाहते. उनके मुताबिक़ उनका काम सृजनात्मक है और वह चाहते हैं कि उनके लिखे हुए का स्थायी महत्व हो. चाहे फिर उसे सदी बाद ही क्यों न पढ़ा जाए.
मुनव्वर राना ने कहा, ‘असल में ट्विटर एक नशा है. नशा है इसलिए कि हम उसका रेस्पांस चाहते हैं. यह उन लोगों के लिए अच्छा है जो शोहरत की बुलंदी पर बैठना चाहते हैं. हमारा काम क्रिएट करना है. हम लोग तो लिखने-पढ़ने वाले लोग हैं. जरूरी नहीं कि हमारा लिखा आज ही पढ़ा जाए क्योंकि शायरी कोई वनडे क्रिकेट नहीं है. इसलिए हमें उसे लोगों तक पहुंचाने की जल्दबाज़ी नहीं.’
निदा फ़ाज़ली
शायर निदा फ़ाज़ली मानते हैं कि उर्दू की अब अहमियत नहीं रह गई है. उसके ज़रिए लोग सियासत कर रहे हैं.
ट्विटर पर काफ़ी पसंद किए जाने वाले शायर क्लिक करें निदा फ़ाज़ली को ख़ुद इस मीडियम में यक़ीन नहीं है. वह कहते हैं कि उर्दू सियासत का खिलौना बना दी गई है और बाज़ार में भी उसकी अहमियत नहीं है.
इसके लिए फ़ाज़ली हिंदी सिनेमा का उदाहरण सामने रखते हैं. ‘उर्दू बाज़ार में नहीं है. बंबई में कब्रिस्तान है जिसने मधुबाला, मोहम्मद रफ़ी और साहिर भी दिए हैं. बाज़ार जब तराजू लेकर पहुंचा तो पता चला कि मधुबाला के चेहरे की क़ीमत ज़्यादा है तो उनकी क़ब्र मार्बल की हो गई. रफी की आवाज़ की क़ीमत ज़्यादा थी तो उनकी क़ब्र ग्रेनाइट की हो गई और साहिर की क़ब्र शब्दों की थी तो पांच बरसातों के बाद ही वह ज़मीन बन गई.’
'सोशल मीडिया पाठ्यक्रम का हिस्सा बने'
उर्दू की तालीम देने वाले क्या सोचते हैं? यह जानने के लिए बीबीसी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद से बात की. प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद ने उर्दू के सोशल मीडिया से रिश्तों की पुरज़ोर तरफ़दारी की. यहां तक कि उनका कहना था कि इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया जा सकता है.
प्रोफ़ेसर तौक़ीर के मुताबिक़ सोशल मीडिया पर उर्दू शेरो-शायरी को आगे बढ़ाने वाले हालांकि उर्दू रसमुल खत (लिपि) का इस्तेमाल नहीं करते लेकिन इसके बावजूद वह उर्दू ही होती है. इसके ज़रिए नई पीढ़ी उर्दू के क्लासिकी शायरों के बारे में जानने की कोशिश कर रही है. उनका कहना है कि उनका काम है कि उर्दू शब्दों के उच्चारण का सही ज्ञान दें.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद
दिल्ली यूनिवर्सिटी में उर्दू विभाग प्रमुख प्रोफ़ेसर तौक़ीर अहमद मानते हैं कि सोशल मीडिया को उर्दू पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
दिल्ली विश्वविद्यालय में ही असिस्टेंट टीचर अफ़साना हयात इक़बाल पर शोध कर रही हैं. उनका कहना है कि उर्दू को उसकी पहचान चाहिए. अफ़साना हयात के मुताबिक सोशल मीडिया उसे इस पहचान के संकट से उबार सकता है मगर वहां उर्दू के लफ़्ज़ों के सही इस्तेमाल पर ज़ोर नहीं होता.
'140 करेक्टर में फ़िट बैठता है शेर'
क्या उर्दू शायरी किताबों से निकलकर वर्चुअल दुनिया में अपना सही मक़ाम हासिल कर सकती है. बीबीसी हिंदी में सोशल मीडिया का काम संभाल रहे सुशील झा के मुताबिक ट्विटर ने उर्दू शायरी को वो इकोनॉमी मुहैया कराई है, जिसमें एक शेर 140 करेक्टर में बख़ूबी अपनी जगह बना लेता है.
सुशील झा कहते हैं, ‘ट्विटर पर एक बाध्यता होती है कि 140 करेक्टर में ही जाना है, और उर्दू के शेर भी ऐसे ही होते हैं छोटे. जैसे ग़ालिब का एक शेर है कि इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया, वरना आदमी हम भी थे काम के. अब ये ट्विटर पर फ़िट बैठता है. अगर आपने किसी को टैग कर दिया, हैशटैग कर दिया तो और कुछ कहने की जरूरत नहीं.’
आप शायर हैं या फिर शायरी के मुरीद. ट्विटर और फ़ेसबुक पर आपको तमाम ऐसे ठिकाने मिलेंगे, जहां आपके पसंदीदा शायर और उनका कलाम संजोकर रखा गया है. इसी के साथ आपको अपने जैसे सैकड़ों वो लोग मिलेंगे जो अपने शायरों का इस्तक़बाल करने के लिए बैठे हैं.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक करें क्लिक कर सकते हैं. आप हमें क्लिक करें फ़ेसबुक और क्लिक करें ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं)
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Sunday, 28 July 2013
#shair schedule for 29th July to 4th august 2013
29th July : #Anwar Mirzapuri & #Noshi Gilani
30th July : #shuja / bahadur / brave
31st July : any verse which has name of a animal/ bird in it #janwar
1st Aug: Noon Meem Rashid (1/8/1910-----------9/10/1975) Birth anniversary #NoonMeem
&
Ali Sardar Jafri death anniversary 1-8-2000 #ASJafri
2nd aug #wafa
3rd Aug : #baitbazi ( this is just an experiment to see our own growth. We play it as individuals only. Which means you start the next verse from where you left the first
Each member can do min of 5 to maximum of 15.
example
KHud vafaa kyaa vafaa kaa badla kyaa
lutf ehsaan thaa agar karte
( last word is 'e'
so you start the next verse with e
ek cheharaa saath saath rahaa jo milaa nahiin
kisako talaash karate rahe kuchh pataa nahiin
then with 'n'
naavak a.ndaaz jidhar diidaa-e-jaanaa.N honge
niim-bismil ka_ii ho.nge ka_ii bejaa.N honge
and so on
4th Aug : Amjad Islam #Amjad 4/8/1944 ( birthday)
30th July : #shuja / bahadur / brave
31st July : any verse which has name of a animal/ bird in it #janwar
1st Aug: Noon Meem Rashid (1/8/1910-----------9/10/1975) Birth anniversary #NoonMeem
&
Ali Sardar Jafri death anniversary 1-8-2000 #ASJafri
2nd aug #wafa
3rd Aug : #baitbazi ( this is just an experiment to see our own growth. We play it as individuals only. Which means you start the next verse from where you left the first
Each member can do min of 5 to maximum of 15.
example
KHud vafaa kyaa vafaa kaa badla kyaa
lutf ehsaan thaa agar karte
( last word is 'e'
so you start the next verse with e
ek cheharaa saath saath rahaa jo milaa nahiin
kisako talaash karate rahe kuchh pataa nahiin
then with 'n'
naavak a.ndaaz jidhar diidaa-e-jaanaa.N honge
niim-bismil ka_ii ho.nge ka_ii bejaa.N honge
and so on
4th Aug : Amjad Islam #Amjad 4/8/1944 ( birthday)
Sunday, 21 July 2013
#shair schedule for 22nd to 27th July
22nd July : #ibadat / bandagi / pooja ( can tweet in any language on this topic)
23rd July : Rajendra Manchanda #Bani & #Shahpar Rasool
24th July : #khat / sandesha / paigham
25 th July #Momin Khan #Mominn
26th July : any verse where first and second line do NOT rhyme : eg.
Apni roshni ki bulandio'n par kabhi na itrana,
Chirag sab ke bujhte hai, hawa kisi ki nahi hoti.
27th July : Moin Ahsan #Jazbi & Ahmed #Mushtaq
Sunday, 14 July 2013
#shair schedule for 15th to 20th July
F15th July : Asararul Haq #Majaz
16th July : #jurm
17th July : #Munir Niazi & #Azm Behzad
18th July : #khaak / mitti
19th July : #Aasi Ghazipuri & #Bekal Utsahi
20th & 21st July will be misra e tarah ( a line will be given to you and you have to complete it)
The line / misra is
" rahegi naa hasti qaraar aate aate"
( please maintain a standard. You can do tukbandi if you are unable to write seeious poetry but even that should make sense via humour)
And do RT and encourage our budding poets
Sunday, 7 July 2013
#shair schedule for 8th July to 13th July 2013
8th July : Khushbir Singh #Shaad & #Dushyant Kumar
9th July : #tanhai / akelapan
10th July ; #Sahir Ludhianvi
11th July : #buland / bulandi
12th July : Allama #Iqbal
13th July : #waqt
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